मकर संक्रांति हमारे भारत मे बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाने वाला पर्व है । हर बार की तरह इस बार भी लोग जानना चाहते है की Makar Sankranti 2024 इस बार 14 जनवरी को है या फिर 15 जनवरी को है तो आइये हम बताते है की इस बार मकर संक्रांति हिन्दू पंचांग के अनुसार 15 जनवरी को मनाया जाएगा. आपको बता दें कि मकर संक्रांति के मौके पर सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो ज्योतिष में इस घटना को मकर संक्रांति कहते हैं।
इस दिन सूर्य देव प्रातः 02 बजकर 54 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इस अवसर पर शुभ मुहूर्त रहेगा. सूर्य जब एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो ज्योतिष में इस घटना को संक्रांति कहते हैं. सूर्य के उत्तरायण होने पर खरमास भी समाप्त होगा और सारे मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे. इस बार की Makar Sankranti 2024 बहुत खास मानी जा रही है क्युकी 77 साल बाद 77 सालों के बाद वरीयान योग और रवि योग का संयोग बन रहा है. यह संयोग 4 रासियों के लिया अच्छा होने वाला है ।
Makar Sankranti 2024 Shubh Sanyog :
पूरे वर्ष में कुल 12 संक्रान्तियां होती हैं, लेकिन मकर संक्रांति महत्वपूर्ण मानी जाती है.पौष मास में जब सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो उस दिन मकर संक्रांति मनाई जाती है. इस साल मकर संक्रांति 15 जनवरी 2024 को है। इस बार की मकर संक्रांति बहुत खास मानी जा रही है क्युकी 77 साल बाद 77 सालों के बाद वरीयान योग और रवि योग का संयोग बन रहा है. यह संयोग 4 रासियों के लिया अच्छा होने वाला है ।
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Makar Sankranti 2024 Katha :
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव और शनि देव पिता पुत्र जरुर थे लेकिन दोनों के बीच रिश्तों में खटास आ गई थी. इसका कारण था सूर्य देव का शनि की माता छाया के प्रति उनका व्यवहार। जब शनि देव का जन्म हुआ तो सूर्य ने शनि के काले रंग को देखकर कहा कि ये उनका पुत्र नहीं हो सकता। उन्होंने शनि को पुत्र स्वीकार नहीं किया और इसके बाद से सूर्य देव ने शनि देव और उनकी माता छाया को अलग कर दिया था। शनि देव और माता छाया कुंभ नाम के घर में रहने लगे लेकिन सूर्य के इस व्यवहार से आहत होकर माता छाया ने उन्होंने कुष्ट रोग होने का श्राप दे दिया। पिता को कुष्ठ रोग से पीड़ित देखकर सूर्य की उनके पुत्र यमराज काफी दुखी हुए। यमराज सूर्य की पहली पत्नी संज्ञा की संतान हैं. यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त कराया. सूर्य देव जब पूरी तरह स्वस्थ होकर अपनी दृष्टि पूरी तरह कुंभ राशि पर केंद्रित कर ली. इससे शनि देव का घर कुंभ जलकर राख हो गया। इसके बाद शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था।
यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि की दुर्दशा देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य से दोनों को माफ करने की विनती करते हैं. इसके बाद सूर्य देव शनि से मिलने के लिए जाते हैं। जब शनि देव अपने पिता सूर्य देव को आता हुआ देखते हैं, तो वे अपने जले हुए घर की ओर देखते हैं. वे घर के अंदर जाते हैं, वहां एक मटके में कुछ तिल रखे हुए थे। शनि देव इन्हीं तिलों से अपने पिता का स्वागत करते है । शनि के इस व्यवहार से भगवान सूर्य देव प्रसन्न हो जाते हैं और शनि देव को दूसरा घर देते हैं, जिसका नाम है मकर। इससे प्रसन्न होकर शनि देव कहते हैं कि जो भी मकर संक्रांति पर सूर्य की उपासना करेगा उसे शनि की महादशा से राहत मिलेगी, उसका घर धन-धान्य से भर जाएगा। इसलिए जब सूर्य देव अपने पुत्र के पहले घर यानि मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।